अफरा- तफरी का यह मेला
अफरा- तफरी का यह मेला
गीत✍️ उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
भानुमती ने जैसे- तैसे
अपना सारा कुनबा जोड़ा
लेकिन हाय यहाँ लोगों ने
अपनों को जाने क्यों छोड़ा।
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नातेदारी अब आ पहुँची
यहाँ टूटने के कगार पर
जैसे उड़ता यान किसी का
आया दुश्मन के रडार पर
लोग स्वार्थी खूब हो गए
काम करें केवल पगार पर
हथियारों को रखा उन्होंने
पैना करने यहाँ धार पर
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सत्य- अहिंसा कहीं छिप गई
मानवता के निकला फोड़ा
कल तक जो संबंध मधुर थे
आज बीच में आया रोड़ा।
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भूखे-प्यासे लोग यहाँ पर
खूब दबंगों के मन भाए
जबरन गईं निकाली किडनी
बेचारे फिर सँभल न पाए
लंबी रकम डकार गए जो
कौन भला उनको समझाए
उत्पीड़ित जो लोग हो रहे
उनको न्याय कौन दिलवाए
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निष्ठा की जब उड़ीं धज्जियाँ
लगा समय ने मारा कोड़ा
जिससे कुछ उम्मीद लगाई
उसने भी उनका दिल तोड़ा।
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जाने कितने ठगे गए हैं
अफरा- तफरी का यह मेला
काले दिलवाले अब सबको
नहीं बनाते अपना चेला
फिर भी उनकी बढ़ी भीड़ है
निकल रहा उनका ही रेला
सड़कें इतनी तंग हो गईं
बीच सड़क पर सजता ठेला
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रोज वसूली के चक्कर में
आवागमन गया है मोड़ा
काला धन नीचे से ऊपर
बँट जाता है थोड़ा-थोड़ा।
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रचनाकार ✍️ उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
'कुमुद -निवास'
बरेली (उत्तर प्रदेश)
मोबा.- -98379 44187
Mohammed urooj khan
18-Oct-2023 05:24 PM
👌👌👌👌
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